Thursday 9 April 2015

मोर्डेन इंडियन वुमन( आधुनिक भारतीय नारी ) की परिभाषा

 मोर्डेन इंडियन वुमन( आधुनिक भारतीय नारी ) कितनी सार्थकता है इस शब्द में आधुनिक सोच और भारतीय संस्कृति का समावेश। वो नारी जो सोच से स्वतंत्र  पर हृदय से संस्कारो का संगम हो।
                            आधुनिक भारतीय नारी , कुछ लोग जब इस पर सोचते हैं तो सबसे पहला विचार जो उनके मन में आता है वो किसी महानगर की कामकाजी स्त्री या विदेश में रहने वाली या पड़ने वाली किसी लड़की या महिला का।  पर यह विचार कितना सही है ?????
                            क्या है हमारे लिए मोर्डेन इंडियन वुमन की परिभाषा। … क्या इस नाम से हम उस वुमन को जोड़ते हैं जो किसी महानगर  में किसी इंटरनेशनल कंपनी में  करती है ,,, या जो विदेश में रहती है ,,, या हमारे अभिनेत्रियां ,,, ऐसा क्यों है ???

शायद  मोर्डेन इंडियन वुमन की सही परिभाषा "" खुले विचारो वाली,,, मन से स्वतंत्र उस नारी की कल्पना है जो कही भी रहती हो , कुछ भी करती हो, पर उसकी सोच आधुनिक हो और मन में परम्पराओ के लिए सम्मान , और जो  परिवर्तन को सहज ही स्वीकार करती हो।

जो महिला आधुनिक कपडे पहनती हो, या किसी महानगरीय सभ्यता से हो , उसे आधुनिक तो मन सकते हैं  पर आधुनिक भारतीय नारी तब तक मान सकते जब तक उसमे हमारे संस्कारो और संस्कृति का समावेश न हो।
                             परन्तु एक महिला जो गाँव में रहती है, घरेलु है पर मन से खुले विचारो वाली है , जागरूक है , पूरे मन से नए विचारो को और नई सोच को स्वीकार करने वाली है  तथा अपनी परम्पराओ का निर्वहन करती हो ,वो है हमारी आधुनिक भारतीय नारी का एक रूप।

क्योकि आधुनिक भारतीय नारी नाम से ही स्पष्ट है :

आधुनिकता -- सोच में,,
भारतीयता -- व्यवहार में ,,

                जिस नारी में ये दोनों गुण हैं , वही है आज की आधुनिक भारतीय नारी। …

                       फिर वो कहीं से भी हो ,, किसी आंतरराष्ट्रीय  कंपनी की अधिकारी हो ,, विदेश में रहने वाली भारतीय नारी हो,, एक छोटे शहर की कामकाजी महिला हो,, या फिर किसी कसबे की घरेलु स्त्री।  बस सोच  ही इन्हे आधुनिक बनती है।

आई पी एल  का एक ऐड है,, जिसमे एक सास अपनी बहु से कहती है " नैना तुम्हारे आने पे ही तो विकेट गिरा है, तुम यहाँ बैठोगी तभी तो हम जीतेंगे " ऐड वाली वो सास है इंडियन वुमन।

      गाँव में रहने वाली वो महिला जो बेटियो की शिक्षा और बाल  विवाह को रोकने के लिए संघर्ष करती है वो  है हमारी असली मोर्डेन इंडियन वुमन।
और हम सब जो विचारो से स्वतंत्र पर मन से संस्कार  संस्कृति से पूर्ण और सम्मान की भावना रखने वाली हैं.... हम सब हैं ""मोर्डेन इंडियन वुमन( आधुनिक भारतीय नारी )""……………।   

Tuesday 7 April 2015

क्यों जकड़ी है बंधन में नारी

 

     नारी,,,, इस शब्द में ही इतनी शक्ति है। . नारी शब्द जो अपने अंदर नार को समाहित किये हुए है  अपने आप में सशक्त ,, स्मपुर्ण,,,  माँ जो लालन पालन करती है,, बहिन जो स्नेह देती है,,, मित्र जो हौसला बढ़ती है.... हर जगह आकेली होकर भी समपूर्ण है नारी ,,, फिर यह समाज उसके  अस्तित्व के लिए एक पुरुष की आवश्यकता क्यों समझता है???? 
                                              आज हर छेत्र  में आगे है। । और आगे बढ़ती ही जा रही है।  उसे अबला ही समझा जाता है,, क्यों उसे अपने जीवन में एक पुरुष की आव्यशकता लेनी पड़ती है???? क्यों  समाज उसकी सशक्ति को किसी के सहारे से जोड़ कर अशक्त है????पुरुष का साथ होना गलत बात  नहीं ,, परन्तु उस पर निर्भर होना,, गलत है

कहते हैं नारी शक्ति है और शक्ति तो पूर्ण होती है… फिर इस पूर्ण शक्ति को बंधन में क्यों बंधा जाता है.
हमारे समाज के सभी नियम , जहा नारी को देवी की तरह पूजा जाता है सही हैं ,, नारी पूज्यनीय है क्यों वही सृष्टि का आधार है,,, सृजन की कल्पना है,,,
                                            परन्तु आज के समाज में नारी बंधनो में जकड़ी हुई है… उच्च तबके में तो शायद नारी आजाद है,, पर हमारे देश के मूल क्षेत्रों ,, जहा देश की सबसे जयादा आबादी रहती है आज भी नारी बंधनो में कैद है.... ऐसा लगता है मनो देवी को मंदिर में किसी पिंजरे  कर दिया हो।  मंदिर से बहार उसका कोई अस्तित्व ही नहीं हो… हर बंधन सिर्फ और सिर्फ नारी के लिये…। क्यों एक नारी के लिए ये आवश्यक है की वो  अपने हर कर्त्तव्य का पालन करे और पुरुष बस  अत्याचार करे…

आज कल का पढ़ा  लिखा समाज पुराने ज़माने के समाज से बहुत भिन्न है.. परन्तु आज भी बहुत जगहों पर नारी अबला ही है… वो कामकाजी है,, जहर संभालती है,,, पर उसे वो सम्मान आज भी नहीं मिल प् रहा जिसकी वो अधिकारिणी है…

 नारी को अकेले जावन यापन करने के अनुमति नहीं है.... मई मानती हूँ की एक सामजिक प्राणी होने के नाते परिवार में रहना हमारा धर्म  है। परन्तु क्यों एक नारी के लिए "शादी " करना  मृत्यु से ऊपर है… क्या समाज में पुरुषो के लिए ऐसा कोई बंधन है.... हमारे देश में ही कई पुरुष हैं जैसे हमें पूर्व राष्ट्रपति कलम जी,, अटल बिहार वाजपेय  जी, रतन टाटा जी,, रामदेव बाबा। । इनके भी बहुत पुरुष है हमारे देश में और पूरे विशव में जिन्होंने विवाह नहीं किया परन्तु वो सफलता के शिखर पर है… तो क्या अगर एक नारी  जीवन यापन करना चाहती है तो उस पर ये बंधन क्यों???? देश में बहुत से ऐसी नजरिया है जिन्होंने अकेले जीवन यापन क्किया है और कर रही हैं। । पर जब उन्होंने ये निश्चय किया होगा क्या तब हमारे समाज ने इसे उ ही स्वीकार लिया होगा ????

Sunday 29 March 2015

नायक ढूंढने की या नायक बनने की जरुरत है????



  कहते हैं फिल्मे हमारे समाज का आईना होती हैं ,,  जब भी मैं "सिंघम " , या " नो वन किल्ड जेसिका " देखती हूँ तो लगता है क्या सच में हमारा समाज इन फिल्मो में दिखाए समाज जैसा ही है???
                              निर्भया कांड के समय लगा की हमारा समाज है इन फिल्मो के समाज जैसा ।  जहाँ हम सब एक हो जाते हैं , अपने आपसी मतभेद भूल कर किसी एक के लिए, किसी एक मुद्दे पर, किसी एक की भलाई के लिए,, किसी एक को न्याय दिलाने के लिए।
                              पर कुछ दिनों बाद ही हम फिल्मो के बाहर वाले समाज की तरह हो गए,,,, हम फिर लड़झगड़  रहे हैं , कभी धर्म  के नाम पर ,, कभी राजनीति के नाम पर ,,  कभी लोगों के बहकावे में आकर । कब हम ये समझेंगे की लड़े मरे कोई भी, खून तो इंसान और इंसानियत का ही बहता है.
                              इसमें गलती किसी एक की नहीं है , हम सबकी है।  जब हम ये फिल्मे देखते हैं तो जोश से भरपूर हो जाते हैं , पसंद करते हैं , वाहवाही करते हैं ,पर कुछ ही समय  में हम सब भूल जाते हैं। हमें  भी इन फिल्मो की तरह ही एक " नायक" की जरुरत है , जो हम में जोश भरे , पहला कदम उठाए , हमें सही रास्ता दिखाए।
तब कितनी खूबसूरत हो जाएगी ना ये दुनिया  , अगर सच में वो नायक हमें उस  भीड़ में तब्दील कर दे  जो जाति-पाति , धर्म  समाज , ऊंच-नीच को भूल कर  एकजुट होती है किसी अनजान को न्याय दिलाने के लिए।  जहा धर्म  के नाम पर एकदूसरे  के जुलूसों  पथराव नहीं किया जाता।
 बात तो अभी भी वही है की हमारे बीच ऐसी जागरूकता लाने  वाले एक नायक की कमी है, पर वो नायक हम कहीं से लाएंगे नहीं वो तो हमारे बीच से ही होगा , जो हमारी तरह सोच वाला होगा।  और शायद  हम सब उसका इंतज़ार भी कर रहे हैं।  पर क्या इंतज़ार करने से बेहतर नहीं होगा की हम ही वो " नायक" बनें ,,,,???????????? 

Monday 16 March 2015

ज़िन्दगी

क्या है ज़िन्दगी। …
                    जिससे भी पूछा उसने अलग जवाब दिया। किसी ने कहा ज़िन्दगी एक जुआ है किसी  ने कहा एक अनसुलझी पहेली है…  किसी ने कहा अपनों की मुस्कराहट है,, किसी के लिए एक  मुट्ठी राख है। …
मुझे लगता है सभी ने सही कहा। । पहेली  तो सुलझाना है.... जुआ है तो खेलना,,,  अपनों की मुस्कराहट है तो अपनो  को हँसाना  है ज़िन्दगी  .... और आखिर  में एक मुट्ठी रख बन जाना है ज़िन्दगी …।
                               पर इन सब बातो का सीधा जवाब बस चलते जाना है ज़िन्दगी।