Sunday 29 March 2015

नायक ढूंढने की या नायक बनने की जरुरत है????



  कहते हैं फिल्मे हमारे समाज का आईना होती हैं ,,  जब भी मैं "सिंघम " , या " नो वन किल्ड जेसिका " देखती हूँ तो लगता है क्या सच में हमारा समाज इन फिल्मो में दिखाए समाज जैसा ही है???
                              निर्भया कांड के समय लगा की हमारा समाज है इन फिल्मो के समाज जैसा ।  जहाँ हम सब एक हो जाते हैं , अपने आपसी मतभेद भूल कर किसी एक के लिए, किसी एक मुद्दे पर, किसी एक की भलाई के लिए,, किसी एक को न्याय दिलाने के लिए।
                              पर कुछ दिनों बाद ही हम फिल्मो के बाहर वाले समाज की तरह हो गए,,,, हम फिर लड़झगड़  रहे हैं , कभी धर्म  के नाम पर ,, कभी राजनीति के नाम पर ,,  कभी लोगों के बहकावे में आकर । कब हम ये समझेंगे की लड़े मरे कोई भी, खून तो इंसान और इंसानियत का ही बहता है.
                              इसमें गलती किसी एक की नहीं है , हम सबकी है।  जब हम ये फिल्मे देखते हैं तो जोश से भरपूर हो जाते हैं , पसंद करते हैं , वाहवाही करते हैं ,पर कुछ ही समय  में हम सब भूल जाते हैं। हमें  भी इन फिल्मो की तरह ही एक " नायक" की जरुरत है , जो हम में जोश भरे , पहला कदम उठाए , हमें सही रास्ता दिखाए।
तब कितनी खूबसूरत हो जाएगी ना ये दुनिया  , अगर सच में वो नायक हमें उस  भीड़ में तब्दील कर दे  जो जाति-पाति , धर्म  समाज , ऊंच-नीच को भूल कर  एकजुट होती है किसी अनजान को न्याय दिलाने के लिए।  जहा धर्म  के नाम पर एकदूसरे  के जुलूसों  पथराव नहीं किया जाता।
 बात तो अभी भी वही है की हमारे बीच ऐसी जागरूकता लाने  वाले एक नायक की कमी है, पर वो नायक हम कहीं से लाएंगे नहीं वो तो हमारे बीच से ही होगा , जो हमारी तरह सोच वाला होगा।  और शायद  हम सब उसका इंतज़ार भी कर रहे हैं।  पर क्या इंतज़ार करने से बेहतर नहीं होगा की हम ही वो " नायक" बनें ,,,,???????????? 

Monday 16 March 2015

ज़िन्दगी

क्या है ज़िन्दगी। …
                    जिससे भी पूछा उसने अलग जवाब दिया। किसी ने कहा ज़िन्दगी एक जुआ है किसी  ने कहा एक अनसुलझी पहेली है…  किसी ने कहा अपनों की मुस्कराहट है,, किसी के लिए एक  मुट्ठी राख है। …
मुझे लगता है सभी ने सही कहा। । पहेली  तो सुलझाना है.... जुआ है तो खेलना,,,  अपनों की मुस्कराहट है तो अपनो  को हँसाना  है ज़िन्दगी  .... और आखिर  में एक मुट्ठी रख बन जाना है ज़िन्दगी …।
                               पर इन सब बातो का सीधा जवाब बस चलते जाना है ज़िन्दगी।