Tuesday 7 April 2015

क्यों जकड़ी है बंधन में नारी

 

     नारी,,,, इस शब्द में ही इतनी शक्ति है। . नारी शब्द जो अपने अंदर नार को समाहित किये हुए है  अपने आप में सशक्त ,, स्मपुर्ण,,,  माँ जो लालन पालन करती है,, बहिन जो स्नेह देती है,,, मित्र जो हौसला बढ़ती है.... हर जगह आकेली होकर भी समपूर्ण है नारी ,,, फिर यह समाज उसके  अस्तित्व के लिए एक पुरुष की आवश्यकता क्यों समझता है???? 
                                              आज हर छेत्र  में आगे है। । और आगे बढ़ती ही जा रही है।  उसे अबला ही समझा जाता है,, क्यों उसे अपने जीवन में एक पुरुष की आव्यशकता लेनी पड़ती है???? क्यों  समाज उसकी सशक्ति को किसी के सहारे से जोड़ कर अशक्त है????पुरुष का साथ होना गलत बात  नहीं ,, परन्तु उस पर निर्भर होना,, गलत है

कहते हैं नारी शक्ति है और शक्ति तो पूर्ण होती है… फिर इस पूर्ण शक्ति को बंधन में क्यों बंधा जाता है.
हमारे समाज के सभी नियम , जहा नारी को देवी की तरह पूजा जाता है सही हैं ,, नारी पूज्यनीय है क्यों वही सृष्टि का आधार है,,, सृजन की कल्पना है,,,
                                            परन्तु आज के समाज में नारी बंधनो में जकड़ी हुई है… उच्च तबके में तो शायद नारी आजाद है,, पर हमारे देश के मूल क्षेत्रों ,, जहा देश की सबसे जयादा आबादी रहती है आज भी नारी बंधनो में कैद है.... ऐसा लगता है मनो देवी को मंदिर में किसी पिंजरे  कर दिया हो।  मंदिर से बहार उसका कोई अस्तित्व ही नहीं हो… हर बंधन सिर्फ और सिर्फ नारी के लिये…। क्यों एक नारी के लिए ये आवश्यक है की वो  अपने हर कर्त्तव्य का पालन करे और पुरुष बस  अत्याचार करे…

आज कल का पढ़ा  लिखा समाज पुराने ज़माने के समाज से बहुत भिन्न है.. परन्तु आज भी बहुत जगहों पर नारी अबला ही है… वो कामकाजी है,, जहर संभालती है,,, पर उसे वो सम्मान आज भी नहीं मिल प् रहा जिसकी वो अधिकारिणी है…

 नारी को अकेले जावन यापन करने के अनुमति नहीं है.... मई मानती हूँ की एक सामजिक प्राणी होने के नाते परिवार में रहना हमारा धर्म  है। परन्तु क्यों एक नारी के लिए "शादी " करना  मृत्यु से ऊपर है… क्या समाज में पुरुषो के लिए ऐसा कोई बंधन है.... हमारे देश में ही कई पुरुष हैं जैसे हमें पूर्व राष्ट्रपति कलम जी,, अटल बिहार वाजपेय  जी, रतन टाटा जी,, रामदेव बाबा। । इनके भी बहुत पुरुष है हमारे देश में और पूरे विशव में जिन्होंने विवाह नहीं किया परन्तु वो सफलता के शिखर पर है… तो क्या अगर एक नारी  जीवन यापन करना चाहती है तो उस पर ये बंधन क्यों???? देश में बहुत से ऐसी नजरिया है जिन्होंने अकेले जीवन यापन क्किया है और कर रही हैं। । पर जब उन्होंने ये निश्चय किया होगा क्या तब हमारे समाज ने इसे उ ही स्वीकार लिया होगा ????

No comments:

Post a Comment